यह सुबह का व्यायाम है। इसे करने के लिए शरीर के अंगों को खींचना तथा संतुलित करना चाहिए (1 से 10 मिनट तक)। योग न्यूरोमस्कुलर (तंत्रिकापेशी) क्रिया को तेज करता है। प्राणायाम (संतुलित श्वसन, 5 से 10 मिनट तक) ऑक्सीजन के अंतर्प्रवाह को प्रोत्साहित करता है तथा शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालता है।
प्राणायाम शरीर तथा मन की एकात्मता को नियंत्रित करता है। यह चेतनता का असाधारण संतुलन उत्पन्न करता है। इसके कई रोगोपचारक लाभ हैं। यह न केवल आनंद उत्पन्न करता है, बल्कि शरीर तथा मन को उत्फुल्ल रखता है। पित्त प्रकृतिवालों के लिए बाएँ नथुने का श्वसन अच्छा होता है। कफ प्रकृतिवालों को दाएँ नथुने में श्वसन करना चाहिए। यह शरीर में ऊर्जा को प्रेरित करता है। वात प्रकृतिवाले रोगियों तथा व्यक्तियों को दोनों नथुनों से श्वसन करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार कैसे करें ?
सूर्यनमस्कार में योग तथा श्वसन क्रिया सम्मिलित है। यह सामान्यतः सूर्योदय या सूर्यास्त से ठीक पहले और मल-मूत्र त्यागने के बाद किया जाता है। सूर्यनमस्कार शुरू करने से पहले सूर्य-मंत्र का जाप करना चाहिए, जैसे—ॐ सूर्याय नमः। नमस्कार करते समय श्वसन पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है। साँस लेते समय सीने को फुलाना चाहिए और साँस छोड़ते समय पेट को संकुचित करना चाहिए।
इसकी 12 मुद्राएँ हैं। यहाँ पर सभी मुद्राओं का वर्णन किया गया है। व्यक्ति को थोड़े-थोड़े अंतराल पर एक-एक मुद्रा अपनाकर सूर्यनमस्कार करना चाहिए। इस दौरान गहरी साँस लेनी चाहिए।
Surya Namaskar yoga poses
1. समस्थिति
नमस्कार की मुद्रा में दोनों पैर एक साथ रखकर सीधे खड़ा होना चाहिए। बाँहें सामने से सीने की ओर नमस्कार की मुद्रा में मुड़ी होनी चाहिए। सीना तना हुआ तथा पूरे शरीर में खिंचाव आना चाहिए।
2. तदासन
हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए उन्हें सिर के ऊपर ले जाएँ। एक गहरी साँस लें। ऊपर की ओर देखकर तब तक साँस लेनी है जब तक दूसरी मुद्रा आरंभ न हो जाए।
3. उत्तानासन
हाथों को पैरों तक लाने की मुद्रा। जैसे ही आप अपनी बाँहों और हाथों को पैर की ओर नीचे लाएँ वैसे ही धीरे से साँस छोड़ें। रीढ़ और गला खिंचा हुआ और झुका हुआ रहेगा। घुटनों को जकड़ें नहीं, बल्कि कंधों और कुहनियों को आराम की मुद्रा में रखें।
4. अश्व संचलनासन
इस मुद्रा के लिए बाएँ पैर को फैलाएँ और दाएँ घुटने को मोड़ें। दोनों हाथों को फर्श पर रखते हुए एक गहरी साँस लें। रीढ़ को ऊपर उठाकर गले तथा चेहरे से मिलाना चाहिए।
5. अधोमुख शवासन
यह साँस छोड़ने का व्यायाम है। बाएँ पैर और दाएँ पैर को साथ लाएँ तथा कंधे और हाथों को अलग रखें। रीढ़ को ऊपर की ओर यथासंभव खींचें और पैरों को फर्श पर लंबा करें।
6. अष्टांग नमस्कार
पैर, घुटने, बाँहें, छाती और ठुड्डी को फर्श से छुआएँ। यह सामान्यतः साँस छोड़ते समय किया जाता है। अपनी साँस को कुछ देर के लिए रोककर रखें और फिर शुरू करें।
7. भुजंगासन
साँस लेते समय दोनों पैरों की अँगुलियों को फर्श पर रखें और दोनों हथेलियों को अलग-अलग फर्श पर रखें। अपनी निचली कमर, सिर, गरदन और सीना यथासंभव ऊपर की ओर उठाएँ। एक गहरी साँस लें। अपना सीना फुलाएँ।
8. अधोमुखासन
यह आठवाँ व्यायाम है। नितंब, कमर का निचला हिस्सा उठाएँ और अच्छी तरह साँस छोड़ें। कुछ समय के लिए अपना पेट देखें।
9. अश्व संचलानासन
व्यायाम संख्या 4 दुहराएँ।
10. उत्तानासन (हाथ से पैर की ओर)
व्यायाम संख्या 3 को दुहराएँ।
11. तदासन
आसन संख्या 2 को दोहराएँ।
12. समस्थिति
आसन संख्या 1 को दोहराएँ।
ये 12 मुद्राएँ एक वृत्त या चक्र पूर्ण करती हैं। इन्हें 10-10 मिनट तक सुबह या शाम को पेट खाली रहने की अवस्था में ही किया जाता है। आयुर्वैदिक व्यायामों को प्रतिदिन 10 से 20 मिनट तक किया जाता है। यदि संभव हो तो इन्हें सुबह ही किया जाना चाहिए। सरल व्यायाम शरीर को गरम करता है, रक्त-संचार और सभी अंगों तथा ऊतकों तक रक्त की आपूर्ति को बढ़ाता है।
कुछ व्यायाम ऊतकों में सक्रियता उत्पन्न करते हैं और खासकर मांसपेशियों, तंत्रिकाओं और हड्डियों को मजबूती देते हैं। कुछ व्यायाम पेट की मांसपेशियों और अंगों को दुरुस्त करने में मदद करते हैं जिसके कारण पाचन दुरुस्त हो जाता है। श्वसन फेफड़ों को सक्रिय करता है तथा ऊतकों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है। फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि होती है, जो फेफड़ों और श्वसन-मार्ग के किसी प्रकार के रोग, जैसे सर्दी, राइनाइटिस, खाँसी तथा दमा आदि को दूर रखता है। कुछ व्यायाम जैसे ध्यान, दिमाग को एकाग्र करने में मदद करते हैं।
ध्यान से कई लोगों में असाध्य कैंसर को समाप्त किया गया है। आहार का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। आहार में फलों तथा अन्य कच्ची सब्जियों को शामिल करने पर कैंसर समेत बहुत सी बीमारियों से बचाव हो सकता है। अत्यधिक भोजन शरीर के लिए हानिकारक है। जीने के लिए खाएँ, न कि खाने के लिए जीएँ। तभी खाएँ, जब भूख हो।